ऐ शहर बकस थोड़ी सी जगह दे दे
तेरा हिस्सा तो नही पर तेरा किस्सा बनुगा
श्याम सगर
My 30th Birthday
उम्र मे एक और साल जुड़ गया
अब खुदकी ख्वाइशों को रोक के रखता हु, लोग कहते है तुम में "ठहराव" आ गया है।
पहले खुल के कभी हँस लेता था, अब कभी कभी ज़रा मुस्कुरा देता हूं।
पहले दिल खोलके बातें करता था, अब सोच सोच के नापतोल के बाते करता हु।
मेने वक़्त से दो पल की खुशियां कमायी तो है, पर अपना साल गिरवी रख कर।
मेने तनख्वाह भी कमाई तो है, पर ऑफिस को अपना वक़्त गिरवी दे कर।
अब लगता है लाइफ आफिस, मोबाइल और कंप्यूटर से बचाकुचा वक़्त बनकर रह गयी है, जो कभी नही बचता।
अब लाइफ जैसे excitement नही routine है।
वक़्त बहौत तेज़ी से भाग रहा हैं, मेरी रफ्तार से परे।
मेरी रफ्तार धीरे हो रहि है, मेरी उम्मीदों से परे।
कंधे अब थोड़ा जुक गये है, जिम्मेदारीओ से उम्मीदो से।
अब बालों में हल्की सी सफ़ेदी जलक रही है और चेहरे पर हल्की सी जुर्रिया।
थोड़ी सी तोंद भी आ गयी है। शायद वक़्त की मार हज़म नही हो रही। जैसे जम गई है शरीर पर।
शायद ये भी एक Phase है, निकल जायेगा।
उम्र में एक साल और जुड़ जाएगा।
पर हा गुज़रा हुआ हर साल तज़ुर्बा देकर जाएगा, कुछ यादें देकर जाएगा।
शायद यही मेरी कमाई है। मेरे जीने की तनख्वा।
Happy 30th Birthday to me😊😊😊
ज़िन्दगी किताबों सी हो चली है।
बस कवर पेज अच्छा है, बाकी सफेद काग़ज़ों पर लिखें गये काले काले अक्षर।
किताबों की तरह ज़िन्दगी को भी अब पढता नही कोई। पढे कौन? पढने का वक़्त कहाँ है। जिये कौन? जीने की फुरसत कहाँ है।
अब किताबों का साथ बस नौकरी मिलने तक है। ज़िन्दगी भी नौकरी लगने तक ही तो है। फिर ...फिर ज़िन्दगी, जिंदगी छोड़ के सब कुछ है।
किताबों में कई कहानियां दफ़्न है। प्यार की, तकरार की इतिहास की उपहास की ज्ञान की विज्ञान की। पर उन्हें पढने की फुरसत कहाँ।
ज़िन्दगी भी हमे कई कहानियां बतलाना चाहती है। कुछ किस्से खुद कहना चाहती है, कुछ किसी और से सुनाना चाहती है।
कुछ बाते तुम्हारी, कुछ किस्से अपनों के, और वो अनगिनत कहानिया उन लोगो की जो शायद तुम्हे मिलते, अगर तुम सबकुछ हांसिल करने की अंधाधुंध दौड़ में सर जुकाए, आंखे मुंदे, कुछ देखे, कुछ महसुस किए बिना भाग रहे ना होते।
वो रेस की जिसकी कोई '"फिनिश लाइन'" नही है। बस दौड़ ना है, हाफ़ना है, और सांस फूलते ही बाहर हो जाना है।
किताबें बतलाती है कि हर जगह देख ने के लिए वहाँ जाना नही पड़ता, हर चीज़ को पाना नही पड़ता, हर ऐहसास को जीना नही पड़ता। बस क़िताब के पन्नो में ही तुम हर एक चीज़ को महसुस कर सकते हो, किसी और के अनुभव से, किसी और कि नज़रो से।
ज़िन्दगी भी तो यही केहती है। कि एक ही जीवन में हम सबकुछ तो नही कर सकते।
क्यों ना तुम अपनी कहानी खुद जिओ और औरों से मिलकर उनके किस्से सुनो और उनका अनुभव महसूस करो। उनकी कहानी का हिस्सा बनो। जितना लिको खबसूरत लिखो, जितना जिओ खूबसूरत जिओ।
आखिर यही तो है ज़िन्दगी।
एक क़िताब। सफेद कागज़ पर काले अक्षर।
-श्याम सगर (नाचीज़)
में डरता बहौत हु
कुछ केहने से, सब करने से, ज़िंदा रहकर भी मरने से
कुछ पाने से, सब खोने से, कोने में छुपकर रोने से
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
हसता हु तो थोड़ा थोड़ा, डर है पागल ना समजे मुज्हे
दिन रात फिरू भागा दौड़ा, कहि नाकारा ना समजे मुझे
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
कइयों को खुश रख ना है मुझे, चाहे में खुश ना रेहपाउ
नाकाम रहा ताने देंगे, डरता हूँ अगर ना सेहपाऊ
✍️✍️✍️✍️✍️
डरता हूँ पैसे कम होंगे तो कैसे में जी पाऊंगा
रिश्तेदारो को अपनो को में कौनसा मुँह दिखलाऊंगा
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
मन की बाते जुठलाकर भी में हांजी सरजी करता हु
घर की गाड़ी और बीमे की बाकी किश्तों से डरता हूँ
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
ये मान लिया मेने की जिना डर से मिली महोलत है
ये डर मेरी फितरत ना थी, अब डरना मेरी आदत है,
अब डर ना मेरी आदत है
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
में बहौत डरता हूँ
-श्याम सगर (नाचीज)