Thursday, 27 September 2018

में डरता बहौत हु-श्याम सगर(नाचीज़)


में डरता बहौत हु

कुछ केहने से, सब करने से, ज़िंदा रहकर भी मरने से

कुछ पाने से, सब खोने से, कोने में छुपकर रोने से

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हसता हु तो थोड़ा थोड़ा, डर है पागल ना समजे मुज्हे

दिन रात फिरू भागा दौड़ा, कहि नाकारा ना समजे मुझे

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कइयों को खुश रख ना है मुझे, चाहे में खुश ना रेहपाउ

नाकाम रहा ताने देंगे, डरता हूँ अगर ना सेहपाऊ

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डरता हूँ पैसे कम होंगे तो कैसे में जी पाऊंगा

रिश्तेदारो को अपनो को में कौनसा मुँह दिखलाऊंगा

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मन की बाते जुठलाकर भी में हांजी सरजी करता हु

घर की गाड़ी और बीमे की बाकी किश्तों से डरता हूँ

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ये मान लिया मेने की जिना डर से मिली महोलत है

ये डर मेरी फितरत ना थी, अब डरना मेरी आदत है,

अब डर ना मेरी आदत है

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में बहौत डरता हूँ

-श्याम सगर (नाचीज)

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