में डरता बहौत हु
कुछ केहने से, सब करने से, ज़िंदा रहकर भी मरने से
कुछ पाने से, सब खोने से, कोने में छुपकर रोने से
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हसता हु तो थोड़ा थोड़ा, डर है पागल ना समजे मुज्हे
दिन रात फिरू भागा दौड़ा, कहि नाकारा ना समजे मुझे
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कइयों को खुश रख ना है मुझे, चाहे में खुश ना रेहपाउ
नाकाम रहा ताने देंगे, डरता हूँ अगर ना सेहपाऊ
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डरता हूँ पैसे कम होंगे तो कैसे में जी पाऊंगा
रिश्तेदारो को अपनो को में कौनसा मुँह दिखलाऊंगा
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मन की बाते जुठलाकर भी में हांजी सरजी करता हु
घर की गाड़ी और बीमे की बाकी किश्तों से डरता हूँ
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ये मान लिया मेने की जिना डर से मिली महोलत है
ये डर मेरी फितरत ना थी, अब डरना मेरी आदत है,
अब डर ना मेरी आदत है
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में बहौत डरता हूँ
-श्याम सगर (नाचीज)
Bahut badiya.. likha hai.. good
ReplyDeletevery nice blog...keep it up
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