Friday, 27 November 2015

"कुछ" By: श्याम सगर (नाचीज)



कुछतो हे ऐसा जो सब जैसा ना हे 
नविन हे नया हे
जो ऐसाभी नाहे , जो वैसाभी नाहे
हर तरफ से अलग़, हर किसमसे जुदाहे 

हवाके बहावों में वो तैरता हे 
और नीले समंदर में वो उड़ रहा हे
निरंतर गतिमय हे पर न हिला हे 
निरंतर हे स्थिर पर भ्रमण कर रहा हे 
 
ना काया का बंधन ना आकारकी सीमा 
ना अग्नि ना वायु ना जल से बना हे 
उसे रंग ऐसाहे जो रंग ही ना हे
दिखता नही पर वो सुंदर बड़ा हे

शायद वही कुछ सभीको मिला हे 
सभी ने जीया पर पता ना चला हे
वही कुछ को पालु यहीं ललसा मे 
वो कुछसे ही कुछ की दुआ कर रहा हे 

सभी जानते हे, सभी मानते हे
मगर नाम मे ,धर्म मे वो बटा हे
किसी का इशू हे, किसी का गुरू हे
किसी का हे ईश्वर किसी का खुदा हे

वही कुछ हे सबकुछ, हे उससे सभी कुछ
अगर वो नहीं तो कहीं कुछभी ना हे

कुछतो हे ऐसा जो सब जैसा नाहे 
नविन हे नया हे 
जो ऐसाभी नाहे , जो वैसाभी नाहे 
हर तरफ से अलग़, हर किसमसे जुदाहै 

        By: श्याम सगर (नाचीज)

Last breath:

खयालों की खाद से ख़ाबों की फसलें 
ओर पेचीदें मसलों की नसलें उघाई हे 

ख़ाबों के खेत में खटिया बिछाई हे  
हमने उमरभर यहि फसल उघाई हे 

By: श्याम सगर (नाचीज)   

16 comments:

  1. Jordar...
    Hidden talent coming out...
    Beautiful journey awaiting..
    Keep thriving hard

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    1. Thanks alot bhaisaab. Your feedback means alot ☺

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  2. खयालों की खाद से ख़ाबों की फसलें
    ओर पेचीदें मसलों की नसलें उघाई हे

    ख़ाबों के खेत में खटिया बिछाई हे
    हमने उमरभर यहि फसल उघाई हे

    By: श्याम सगर (नाचीज)

    ભાઈ ભાઈ

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    1. Thanks Anil for regularly giving ur Valuable feedback ☺

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  3. This comment has been removed by the author.

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  4. Awesome bhai keep it up
    👍

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  5. Thank u so much bhai...and this one is niceeeeeee.. 😀

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