Sunday, 5 February 2017

तू आग है - श्याम सगर (नाचीज़ )

मन के अंदर भीतर भीतर, 
एक आग सुलगती रहती है 
वो जलकर और जलाकर मुजको 
लपटों में कुछ कहती है 

तूम लौं  से जलते रहते थे 
क्यूँ राख से बुजकर  बैठे हो ???
तूम  रोशन से एक चिराग़ थे ,
क्यूँ बुझे बुझे से रहते  हो ???

अपनी ज्वाला  से हर मुश्किल 
पलभर में ही पिगलाते थे  
अब छोटी छोटी बातों से 
खुद पिगले पिगले रहते  हो  

अपने अंदर को रोशन कर 
और खाबों को चिंगारी दे 
हिम्मत की फिर एक शमां जला 
फिर होंसलों को एक बारी दे 

तू आग है  तेरी फ़ितरत है 
रोशन होना और जल जाना 
एक छोटी सी चिंगारी से 
तपती ज्वाला में बदल जाना 

उजाले और उजागर कर, अंधेरों को निगल जाना 


-श्याम सगर (नाचीज़ )

लास्ट ब्रेथ :
हम है की हम नहीं ?
हम हे तो कहाँ हे , और हम नहीं तो कहाँ गए ??
हम है तो किस लिए है , और कहीं  गए है तो कब?? 
जनाब, हम  थे भी या हम थे ही नहीं ????
 -विशाल भारद्धाज (हैदर )